वाक्य -

सार्थक शब्दों का व्यवस्थित समूह, इसमें अपेक्षित अर्थ पूर्ण रूप से प्रकट होता है, वाक्य कहलाता है।

वाक्य के अंग

वाक्य के मुख्य 2 अंग होते हैं।

1- उद्देश्य- वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाए, उसे उद्देश्य कहते हैं, मुख्य रूप से कर्ता ही वाक्य का उद्देश्य होता है जैसे- रमेश दौड़ता है।

2- विधेय- वाक्य में उद्देश्य या कर्ता के विषय में जो कुछ भी कहा जाए उसे विधेय कहते हैं। सामान्य रूप से करता उद्देश्य होता है और क्रिया विधेय। जैसे- रमेश दौड़ता है। 

उद्देश्य का विस्तार - उद्देश्य एक शब्द का भी हो सकता है और अधिक का भी क्योंकि अनेक स्थानों पर कर्ता के साथ उसे विस्तार देने वाले विशेषण भी लगे होते हैं। यह विशेषण ही कर्ता का विस्तार होते हैं।

जैसे- क्रिकेट टीम के सदस्यों ने अंकित को अपना कप्तान चुना। 

इस वाक्य में सदस्यों ने उद्देश्य है और क्रिकेट टीम के उसका विस्तार है। अतः हम कह सकते हैं जिन शब्दों से उद्देश्य की विशेषता बताई जाती है उन्हें उद्देश्य का विस्तार कहते हैं।

विधेय का विस्तार - विधेय मे क्रियापद प्रमुख होता है किंतु उसके साथ कर्म क्रियाविशेषण पूरक आदि भी प्रयोग होते हैं। यह सभी विधेय के विस्तार होते हैं। 

जैसे- मां ने कल बच्चों को हलवा खिलाया। 

इस वाक्य में खिलाया विधेय है और इससे जुड़े कल बच्चों को हलवा पद विधेय खिलाया के विस्तार हैं। इनमें कल क्रियाविशेषण हैं बच्चों को गौणकर्म और हलवा मुख्य कर्म है।


वाक्यों के भेद-

वाक्यों का वर्गीकरण दो आधारों पर किया जाता है। 

  1. अर्थ के आधार पर

  2. रचना के आधार पर


1- अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद


अर्थ के आधार पर वाक्य 8 प्रकार के होते हैं।

  1. विधानवाचक 

  2. निषेधवाचक 

  3. प्रश्नवाचक 

  4. आज्ञावाचक 

  5. इच्छावाचक 

  6. संदेहवाचक 

  7. संकेतवाचक 

  8. विस्मयवाचक


1- विधानवाचक वाक्य - जिन वाक्यों में क्रिया के होने या करने का सामान्य कथन होता है उन्हें विधानवाचक कहते है।  जैसे-

आकाश में तारे टिमटिम आ रहे हैं।

विवेक के पिता इंजीनियर हैं।

2- निषेधवाचक वाक्य - जिन वाक्यों में क्रिया के ना होने अथवा ना करने की बात कही जाती है अर्थात क्रिया के होने का निषेध किया जाता है उन्हें निषेधवाचक कहते हैं जैसे- 

उसे मत जाने दो। 

अमर खाना नहीं खा रहा है। 

3- प्रश्नवाचक वाक्य- जिन वाक्यों में प्रश्न करने या पूछने का पता चलता है उन्हें प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- 

क्या तुम आज खेलने नहीं चलोगे? 

मां उसे क्यों डांट रही हो?

4- आज्ञावाचक वाक्य - जिन वाक्यों में आज्ञा अनुरोध आदेश अनुमति या प्रार्थना आदि का भाव प्रकट हो उन्हें आज्ञा वाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- 

तुम बाहर जाकर बैठो - आज्ञा 

आप हमारे घर अवश्य आइएगा - अनुरोध 

तुम छुट्टी नहीं जाओगे-आदेश

5- इच्छावाचक वाक्य - जिन वाक्यों में बोलने वाले की इच्छा कामना आशाया आशीर्वाद आदि का भाव प्रकट हो उन्हें इच्छा वाचक वाक्य कहते हैं। जैसे

तुम बड़े अधिकारी बनो।- इच्छा 

ईश्वर तुम्हारी आयु लंबी करें। - आशीर्वाद

6- संदेहवाचक वाक्य - जिन वाक्यों से क्रिया के होने में संदेह संभावना प्रकट हो उन्हें संदेह वाचक वाक्य कहते हैं। जैसे - शायद इस वर्ष हम विदेश जाएंगे। - विदेश जाने की संभावना

7- संकेतवाचक वाक्य - जिन वाक्यों में एक क्रिया का होना दूसरी प्रिया पर निर्भर हो या किसी सर्च की पूर्ति की बात कही गई हो उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं जैसे - 

यदि धूप निकलती तो कपड़े सूख जाते।

8- विस्मयवाचक वाक्य - जिन वाक्यों में विश्व में अशोक मीणा आदि मनोभाव प्रकट होते हैं उन्हें विस्मयवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे

शाबाश इसी तरह तरक्की करते रहो।


2- रचना के आधार पर वाक्य के भेद 


रचना की दृष्टि से वाक्य तीन प्रकार के होते हैं - 

1- सरल वाक्य- जिन वाक्यों में एक उद्देश्य और एक ही विधेय अर्थात क्रिया होती है उन्हें शरण या साधारण वाक्य कहते हैं जैसे - भारत एक लोकतंत्र आत्मक स्वराज्य है। 

2- संयुक्त वाक्य- जिन वाक्य में दो या दो से अधिक साधारण वाक्य समुच्चयबोधक अव्यय अर्थात क्योंकि इसलिए और अथवा ताकि की किंतु परंतु बल्कि के द्वारा जुड़े हो उन्हें संयुक्त वाक्य कहते हैं। संयुक्त वाक्य में प्रयुक्त उपवाक्य अपने आप में स्वतंत्र होते हैं जैसे - 

मैं आपको फोन नहीं दूंगी या किसी के हाथ खबर भिजवा दूंगी।

3- मिश्र वाक्य- जिन वाक्यों में एक मुख्य प्रधान उपवाक्य हो और अन्य गौण या आश्रित उपवाक्य हो उन्हें मिश्र वाक्य कहते हैं। जैसे- 

उस लड़की को बुलाओ जो वहां बैठी रो रही है। 

जब भी मैं मिताली के घर गई वह घर पर नहीं मिली।